Monday 4 July 2011

सूर्य का आहत मौन

गोधूली, कोलाहल, शोर के बीच
चला जाता
पूरब से पश्चिम की ओर
आहत थका हुआ सूर्य
संध्या के मेहावरी आंचल में सिर छुपाये
तीव्रता से बढ़ते अंधकार से अपने को बचाने
दिन भर आलोकित, आनंदित, प्रफुल्लित
पश्चिम-क्षितिज-सागर में डूबता

अंधेरे उजाले की प्रेम-प्रवंचना से आहत
अपना कर्तव्य मान
प्रकृति को जीवन-उष्मा देता
जन-जन को प्रभाती-कलरव
कर्ममय-जीवन के देता विविध आयाम
स्वप्न, आशा, विश्वास, सौन्दर्य, अभिलाभा
पीड़ा, हताशा और स्वप्न-सुख अभिराम
सूर्य अपनी झोली में भर लेता
प्रकृति और मनुष्य की दिवा-स्वप्न-व्यथा
नव जीवन-संदेश देता-
बंधा रहता गति के साथ अविराम
अस्त्व-परिवर्तन का शाश्वत नाता
फिर भी सूर्य दिन-प्रति-दिन
अंधकार-चक्रव्यूह में
समय-गति के संकेतों पर
छला जाता।

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