Wednesday 6 July 2011

काव्य-सुख

हम अपनी स्मृतियों को
प्राण-संवेदना के विविध रंगों से
कागज पर छन्द गान चित्र उकेरते रहे
और कहते रहे यही कविता है...

हम अपनी पिपासा और खंडित मर्यादा
चुके हुए सपने
मरी हुई अहमन्यता के किस्से
अभिव्यक्त करते रहे
और कहते रहे आज के जीवन का
यही सही यथार्थ है ....

हम अपने को जितना ही खोते रहे
कागज का सुख ढोते रहे
जीवन-अभिव्यक्ति की यह भी एक विडम्बना है
दायरे में बंद अनतप्त अभिव्यक्ति से सर्जित
क्या वह कविता है?

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