Monday 13 November 2017

प्रेम-तीन चित्र


(1)
प्रेम में
ललचाना
इठलाना
हृदय की तपिस बुझाना
अतृप्त हृदय-आकाश में
आकांक्षा की पतंग उड़ाना
और पतंग की डोर टूटने पर
हाथ मलते रह जाना

(2)
प्रेम का दायरा असीम है,
आकाश की तरह विस्तृत अनन्त है
न उसका आदि है
न अन्त है
प्रेम का
हृदय से
सीमा सम्बन्ध है
प्रवंचना के माहौल में प्रेम
मन का छल-छन्द है
प्रेम, कोमलता, करूणा, उदात्त भावना
और सूक्ष्म अनुभूतियों से निर्मित्त
कामना-घर में वास करता है
प्रेम, बसन्त, पतझर, ग्रीष्म, वर्षा
मौसम का परिवर्तन सहता है
प्रेम, मन का नैसर्गिक सौन्दर्य है
कभी न मिटनेवाला दर्द है
प्रेम, हृदय और मस्तिष्क के बीच चलनेवाले
द्वन्द-युद्ध का योद्धा, महानायक है
जीवन-सत्य का अभिनव गायक है

(3)
प्रेम के अनेको नाम है-
इश्क, संप्रीति, मुहब्बत, भालोवासा,
चाहत, आत्म-मिलन का देवता
शिशिर की सिहरन
हृदय का अनुराग प्रबुद्ध
प्रेम, यानी मानव-चेतना का महायुद्ध

जब सृष्टि का निर्माण हुआ था
प्रेम ने धरती पर पहला कदम रखा
वह त्याग, करूणा, आत्मसमर्पण का आत्मीय सखा है
प्रेम अन्तर्रागी महाप्रबुद्ध है
प्रेम, हृदय-समुद्र में उठती-गिरती
लहरों का उद्वेलन प्रकंपन है
प्रेम, नवरूप सौन्दर्य आकर्षण सर्जन है
प्रेम, जीवन का आत्म-विसर्जन है।


समय-गति


समय, आदमी और इतिहास
अपनी नियति से चलता है
समय में ही आदमी पलता है
समय चलते चलते
हठात इतिहास बन जाता है
आदमी और समय का
अनादिकाल से गहरा नाता है।

            -स्वदेश भारती

14-11-2017
उत्तरायण, कोलकाता
e-mail : editor@rashtrabhasha.com
Blog : bswadesh.blogspot.com

Friday 10 November 2017

इतस्तः-4

धर्म, राजनीति और साहित्य से जुड़े व्यक्तियों के विरुद्ध
गालीगलौज भारतीय संस्कृति नहीं होती
व्यक्तिगत छीछालेदर, चरित्र हनन से
व्यक्तिगत आजादी और
देश की अस्मिता रोती अपनी मर्यादा खोती

            X           X          X          X

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यह नहीं है कि कोई किसी भी व्यक्ति का
अपमान करे, उसके व्यक्तित्व और कृतित्त्व को अपमानित करे,
गलत ढंग से टीका टिप्पणी करे। यह नैतिकता
के खिलाफ है और देश की संवेदनात्मक स्वतंत्रता पर आघात है।
यह सिलसिला देश को विखराव के रास्ते पर ले जाएगा।
यह मानव सभ्यता और जनतंत्र के विरुद्ध है।
यह सब बन्द होना चाहिए।
आदमी का आदमी के खिलाफ युद्ध है

X           X          X          X

स्वस्थ दिमाग से ही स्वस्थ समाज बनता है।

                  -स्वदेश भारती

04 नवम्बर, 2017
उत्तरायण, कोलकाता
e-mail : editor@rashtrabhasha.com
Blog : bswadesh.blogspot.com



इतस्ततः-5

किसी भी स्वतंत्र गणतांत्रिक देश के चार संवैधानिक आधार स्तम्भ होते हैं
संविधान
राष्ट्र-ध्वज
राष्ट्रगान
राष्ट्रभाषा

26 जनवरी 1950 को हमें संविधान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान संविधानगत प्राप्त हुआ परन्तु
आजादी के 70 वर्षों के बाद भी देश को राष्ट्रभाषा नहीं मिली। हमारी आजादी अभी भी पूरी
तरह मुक्कमल नहीं हुई।
                                                                       -स्वदेश भारती

05 नवम्बर, 2017
उत्तरायण, कोलकाता
e-mail : editor@rashtrabhasha.com
Blog : bswadesh.blogspot.com


इतस्ततः-6

उषा की प्राणगर्भित लाली चूमती
स्वर्णमंडित पूर्वाकाश को
भौंरे स्वच्छन्द निकल पड़ते कलियों की गलियों में
चूमते विविधवर्णी फूलों के रस-पराग
जला जाते विरहीजनों के हृदयों में संप्रीति-आग
निर्झर चूमते नदी की रसधार
आलिंगनबद्ध नदी चूमती उद्वेलित पारावार
सभी जड़ चेतन प्रकृति के नैसर्गिक नियमों से बंधे होते
मनुष्य भी कर्म और नियति से सधे होते
उत्श्रृंखल व्यक्ति अपना अस्तित्व खोते

X           X          X          X

यूं तो मनुष्य पागल इच्छाओं से हारा है
लक्ष्य तक पहुंच पाने में
आत्म नियंत्रण ही उसका सबसे बड़ा सहारा है।

                                        -स्वदेश भारती

5 नवम्बर, 2017
उत्तरायण, कोलकाता
e-mail : editor@rashtrabhasha.com
Blog : bswadesh.blogspot.com


X           X          X          X

इतस्ततः-8

संसद, विधानसभाओं में
विखंडित राजनीति का भालू नाचता है
भालू के साथ बन्दरों का समूह भी नाचता है
थिरक थिरक कर
थिरक थिरक कर
दुखिया, भुखिया, किसान, मजदूर किसी गलियारे, चौराहे पर
आंखों में अभावग्रस्त आंसू भर कर नाचता है
समय राजपथ पर उसकी अभागी भाग्य अनमने मन से
लिखता जाता है।
                                                  -स्वदेश भारती

07 नवम्बर, 2017
उत्तरायण, कोलकाता
e-mail : editor@rashtrabhasha.com
Blog : bswadesh.blogspot.com


इतस्तः-9

संसद, विधानसभाओं, राजपथ पर
नेता राजा नंगा नाचता है
ता ता धिन धिन
ताक धिनक धिन, ताक धिनक धिन
आए शुभ दिन
ढोल मृदंग मजीरा बाजे
तुरही वीन बांसुरी साजे
वोट-विजय का उत्सव आया
सिंहासन ने शंख बजाया
सत्ता ने चौमासा गाया
नेता नंगा नाच दिखाया
धिनक धिनक धिन
धिनक धिनक धिन
ताता ताता धिन धिन
ताक धिनक धिन, ताक धिनक धिन
दल-विपक्ष को मारो गिन गिन
सत्ता कुर्सी के आए दिन
ता ता धिन धिन, ताक धिनक धिन।
धिनक धिनक धिन

                         -स्वदेश भारती

08 नवम्बर, 2017
उत्तरायण, कोलकाता
e-mail : editor@rashtrabhasha.com
Blog : bswadesh.blogspot.com


इतस्ततः-10

काली घोड़ी लाल लगाम
हाथ में छूरी मुंह में राम
लाभ लोभ को करो सलाम
सत्ता, मंदिर, नेता, राम

                     -स्वदेश भारती

09 नवम्बर, 2017
उत्तरायण, कोलकाता
e-mail : editor@rashtrabhasha.com
Blog : bswadesh.blogspot.com



इतस्ततः-11

राजनीति के लिए
छल, दल-बल जरूरी है
झूठ, फरेब, खडयंत्र मजबूरी है
नेता और जनता में मीलों की दूरी है
उदंडता के बिना राजनीति अधूरी है।

                          -स्वदेश भारती

10 नवम्बर, 2017
उत्तरायण, कोलकाता
e-mail : editor@rashtrabhasha.com
Blog : bswadesh.blogspot.com


भारत तथा विदेशों में मेरे कवि मित्रों, प्रिय पाठकों, इतिहासकारों, साहित्य समीक्षकों

        विशेष विज्ञप्ति

मैंने 12 वर्ष की आयु से साहित्य-लेखन शुरू किया। तब से अब तक लिखता रहा हूं।
प्रतिदिन कविता के साथ साक्षात्कार करता रहा हूं। अभी तक 28 काव्य संकलन,
2 महाकाव्य, 9 उपन्यास, लगभग 60 से अधिक संपादित पुस्तकों, कोशों, शैक्षणिक ग्रन्थों को
मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखने का यत्न किया है।

38 वर्षों से प्रतिदिन कविताएं लिखना मेरी काव्य साधना की प्रतिदिन दिनचर्या रही है।
अभी तक मैंने कुल 13837 कविताएं लिखी है। और यह क्रम जारी है, अन्ततः जारी
रहेगा।

                                                                                     -स्वदेश भारती
10 नवम्बर, 2017
उत्तरायण, कोलकाता
e-mail : editor@rashtrabhasha.com
Blog : bswadesh.blogspot.com

Friday 3 November 2017

                  इतस्ततः-1

प्रथम पुरूष - प्रश्न                                     द्वितीय पुरुष - उत्तर

भारत महान-वर्तमान राजनीति                 -   अहा, अहा, अहा
नीति, न्याय, आमजन-सेवा-संगति           -   आह, आह, आह
परिवर्तन, विकास, उन्नयन-प्रगति            -   हाय, हाय, हाय,
भाषा, साहित्य, धर्म, संस्कृति की नियति   -   हरे राम, हरे राम, हरे राम
सत्ता की लोभलाभी दौड़ की गति                 -   वाह, वाह, वाह
   
                                                                  - स्वदेश भारती
04-11-2017
उत्तरायण
331, पशुपति भट्टाचार्य रोड
कोलकाता-700 041
e-mail : editor@rashtrabhasha.com

Thursday 2 November 2017

तीन समय-चित्र

                   (1)
समय की धारा में
कितना सारा सारा जल
प्रवाहित होता रहा
संसृति का इतिहास-अस्तित्व
बनता रहा, खोता रहा
मनुष्य की कामना, लोभ का घटाधारी मेघ
घिरता रहा, गरजता रहा, बरसता रहा
मनुष्य की नियति को भिगोता रहा।
जो जाना सो आगे बढ़ता रहा
जो नहीं जाना पीछे छूटता रहा।

     X      X        X         X

                    (2)
हे पथिक, जरा रूक कर सोचना
समष्टि की समरसता का आत्मीय-जाल बुनना
अपने को गुनना, भीतर की आवाज सुनना
तब समय के साथ अभीष्ट की ओर बढ़ना।

       X      X        X         X

                   (3)
कर्म ही मनुष्य के उद्भव
विकास और प्रगति का आधार बनता है
कर्म से ही देशकाल, जीवन बदलता है
कर्महीन सदा अपने समय को छलता है।

                           -स्वदेश भारती
03-11-2017
उत्तरायण
331, पशुपति भट्टाचार्य रोड
कोलकाता-700 041
e-mail : editor@rashtrabhasha.com