Friday 30 December 2011

प्रतीति

वे आए और बैठ गए बेंच पर
एक दूसरे के करीब
मैंने हरी घास का एक तिनका
होठों के बीच रख लिया।

वे बातों में रम गए
बाहों में बंधे
झुके बरगद के नीचे
और मैंने घुमड़ रहे भावों को नंगा कर
तनाव की झाड़ी में फेंक दिया।

वे बाहों में बंधे बैठे थे
अधलेटे
मौन की झाड़ी कांपी फिर स्थिर हुई
मैने
सूनी आंखों में भर लिए
सान्ध्याकाश के भटकते मेघ
दूर एक पंछी अकेला
इस छोर से उस छोर तक उड़ता हुआ
चला गया
प्रेम निर्मोन का करता अभिषेक।

Experiencing the sensitivity of love

Both came there and sat on the bench
Close to each other, unmindful of others
I plucked a leaf of the green grass
and placed it is between my lips.

They forgot all else, absorbed in their talks
In each other's arms
under the banyan tree
And I stripped my crowded feelings,
threw them in the bush of tension.

They both were sitting arms-in-arms
half lying
Thebush of silence treambled
and then stabled itself again
I filled up my eyes with wandering clouds
inthe evening sky
In the far of space a solitary bird
flew from this end to that end
the bird lost itself from the path of
my gazing,
Perhaps the bird was paying
royal salute to the soundless
Love.

Abortion of Lokpal Bill

Its a matter of great sorrow &  surprise to see the treachery and black politics in the proceeding of Lok Sabha & Rajya Sabha on adoption of Lokpal Bill on 26th, 27th, 28th & 29th December 2011, The New Generation of India felt horrified as how the most corrupt and eaters of animal feeders ignorantly and cunningly  safeguard their own interests selfishness and corrupt party politics the govt was helpless and could not do the required leadership skills to Pass the lokpal Bill. The history of India can not forget the great treachery and injury inflicted on the body of democracy and disown the right of people. During the last more that forty years Lokpal Bill is pending and waiting. It's the voice of one Gandhian Anna Hazare by which the youth of modern India gathered to speak & think about the most corrupt Politics and the leaders selfishness in hoarding the money and Power making the Indian democracy the most corrupt and people after 65th year of Independence.
Certainly the new generation of India will give these corrupt leaders befitting reply in the next Assembling and general Elections.


लोकपाल बिल की भ्रूण हत्या 
लोकपाल बिल का संसद द्वारा पास न किया जाना भारतीय लोकतंत्र के लिए कलंक है। जो भ्रष्ट नेता जनता का पैसा ही नहीं जानवरों का चारा तक खा कर डकारते नहीं वे संसद में बड़े-बड़े भाषण देकर भारतीय जनतंत्र को बदनाम करते हुए इस देश की जनता के साथ गद्दारी करते हैं। उनकी चालाकी, भ्रष्टाचारी प्रकृति  का नजारा संसद में लोकपाल बिल पेश होने के दौरान दिखाई दिया।
सरकार 40 वर्षों से अधिक समय से लोकपाल कानून संसद द्वारा पास नहीं करा सकी। गांधीवादी अन्ना हजारे के आह्वान पर देश के लाखों युवकों ने जब भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की, तब देश के भ्रष्ट नेताओं के पास लोकपाल पास करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा। फिर भी उनकी नीयत में खोट के कारण राज्यसभा में बिल पास नहीं हो सका और नेताओं के घटिया शोर शराबे की काली रात के अंधेरे में यह खो गया। 65 वर्षों की जनतांत्रिक व्यवस्था में नेताओं के भ्रष्ट, अजनतांत्रिक स्वार्थपरक, लोकाचार के कारण भारत की विशेष कर ग्रामीण जनता त्रस्त और पस्त है। नई पीढ़ी यह सब देख रही है और अगले चुनावों में भ्रष्ट नेताओं को सबक सिखाएगी।
कुछ नेता अन्ना हजारे पर वार करने से नहीं चूक रहे हैं वे कल जनतंत्र के भिखारी के रूप में जाने जाएंगे। इतिहास और जनता उनको कभी माफ नहीं करेगी। 

Tuesday 27 December 2011

गांधीगीरी की प्रासंगिकता

गांधीगीरी आज भी भारत ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में प्रासंगिक है। आजादी की सुरक्षा, मानव अधिकारों का संरक्षण सत्ता की मार, पैसों से वोट की खरीद-फरोख्त, भ्रष्टाचार और काले धन की अजगरी विषाक्ता से मुक्ति पाने के लिए गांधीवाद, अहिंसा और जनजागरण तथा एकजूटता बहुत जरूरी है।
भ्रष्ट अधिकारियों, नेताओं को सबक सिखाना गांधीगीरी का सबसे पहला काम है।  गांधीवादी, अन्ना हजारे का आंदोलन, भारत की आजादी तथा राष्ट्रवाद को सुदृढ़ करने का उचित कदम है। आज के भ्रष्टाचार के फैलते हुए वायरस जो भारतीय जनमानस को हर तरह से विषाक्त बना रहा है और उसे हर कदम पर दूषित कररहाहै। आज के संदर्भ में भारतीय जनगण को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति निःस्वार्थ भाव से देश के लिए जागरूक होना जरूरी है। चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष दोनों को राष्ट्रहित में काम करना है। अन्ना की आवाज समाज में छायी बुराई, अराजकता, सरकारी धन की लूट, नेताओं की मनमानी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक आंदोलन है। जिससे राष्ट्र की आजादी सुरक्षित रह सके। अब जनता को निडर होकर अपने वोट का सही इस्तेमाल करना है। अच्छे, बेदाग प्रतिनिधियों को ही चुनना है। यही देशी की स्वतंत्रता की सुरक्षा का एक ही रास्ता है।
हमें अन्ना हजारे के आंदोलन से जुड़कर राष्ट के लिए यदि बलिदान देना पड़े तो उससे बढ़कर कुछ भी नहीं। 

Thursday 15 December 2011

गांधीगीरी

गांधीगीरी आज अधिक प्रासांगिक है। आजादी की सुरक्षा, मानव अधिकारों के संरक्षण, पैसों से वोट खरीद फरोख्त, भ्रष्टाचार और कालेधन की अजगरी विषाक्तता से मुक्ति पाने के लिए गांधीवाद, अहिंसा, जन-जागरुकता, एकजुटता जरूरी है।
भ्रष्ट अधिकारियों, नेताओं को आजन्म कारावास दिया जाना चाहिए।
गांधी वादी अन्ना हजारे का आंदोलन जनजागरण और राष्ट्रवाद को सुदृढ़ करने का उचित कदम है। जन-लोकपाल देश के लिए जरूरी है।
आज के संदर्भ में भारतीय जनगण को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होना है। उससे सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए राष्ट्रहित में काम करने का मार्ग प्रशस्त होगा। समाज में छाई बुराई, अराजकता, सरकारी धन की लूट, नेताओं की मनमानी  और साजिशों से जनता एकजुट होकर सावधान रहे। अपने वोट का सही इस्तेमाल करे। अच्छे वेदाग प्रतिनिधि को ही चुने। वोट दे। यही देश की स्वतंत्रता की सुरक्षा और विकास का सही रास्ता है।

Wednesday 7 December 2011

मथुरा-वृन्दावन इतिहास की परतों में

वृंदावन, 7 नवम्बर, 2011

तीन दिनों तक मथुरा वृंदावन राधाकृष्ण धाम का
दर्शन, परिदर्शन करता रहा
राधामधव के प्रति आत्म-भाव की डोर से बंधा
विदा लेकर इस पावन माटी की
राधा-गंध सुवासित नन्दन-कानन से
आज प्रस्थान करूंगा,
कलकत्ता महानगर की भीड़ भरी
सड़कों, दिनचर्याओं की आत्महन्ता पीड़ा,
सहेजने के लिए
विदा दो गोपी कृष्ण, मधुसूदन, गोविन्द,
लल्ला, माखन चोर, रणछोड़, गोपाल,
कनुप्रिया, कान्हा, कन्हैया, कृष्ण,
कालिन्दी तटवासी, कालेनाग को परास्त करने वाले,
माखन, चीर-चोर, रास रचैया, नट नागर,
नमन है वृन्दावन,
नमन है कृष्ण जन्म भूमि मथुरा,
नमन है विगत इतिहास का
कृष्णकारी समय
राधा माधव तुम्हारा जन्म जन्मान्तर हो जय।

वंशी का मोहक जदुअई स्वर

बंशी वंशी चली नाव
धीरे-धीरे यमुना के बीच
कान्हा ने बांधा पाल
रेशम की डोरी खींच
राधा खिलखिलाकर हंस पड़ीं
मध्य रात्रि में चन्द्रिमा कार्तिकपूनम की
एकटक देख रही अद्भूत जल बिहार
स्थिर, मनमुग्ध, आकाश में जड़ी,
राधा माधव जा रहे यमुना घाट से नंद गांव

राधा ने झुक कर चुल्लू भर
कालिन्दी का जल
छिड़क दिया कान्हा की देह पर
जादुई चातुरी से नट नागर ने भिंगोया
राधा का तनमन संप्रीति के जल से
राधा ने धीरे से कहा
चलो बांधो न नाव
नन्द गांव-तट के पीपल की छांव
बात बात में
कट गई रात
वंशी बजी चलती रही नाव

राधामय वृन्दाधाम
स्मृतियां अब भी हरी भरी हैं
निधिवन में
रासलीला के अभिनव भावनर्तन में
विह्वल करने वाले आत्म मन में
स्मृतियां अब भी जीवित हैं
सेवा-कुंज के आर पार
राधारमण के आत्म-मिलन क्षण में
कालिन्दी के कछारों में
स्मृतियां सदा, बनी रहेंगी अजर अमर,
राधा गोपीनाथ की अमर-लीला में
बांके बिहारी के आनन्द-नन्दन-कानन में
वृन्दावन की पावन मिट्टी के रजकण में
आज भी बरसाने में राधा राज राजेश्वरी हैं।

Monday 5 December 2011

बजी वंशी चली नाव

बजी बंशी चली नाव
धीरे-धीरे यमुना के बीच
कान्हा ने बांधा लाल-हरे पाल
रेशम की डोरी खींच
राधा खिलखिला कर हंस पड़ीं
मध्य रात्रि में कार्तिक पूनम की चन्द्रिमा
एकटक देख रही अद्भुत जल बिहार
स्थिर, मनमुग्ध, आकाश में जड़ी
राधा माधव जा रहे यमुना घाट से नंदगांव

राधा ने झुक कर चुल्लू भर
कालिन्दी का जल
छिड़क दिया कान्हा की देह पर
जादुई चातुरी से नटनागर में भिंगोया
राधा का तनमन संप्रीति के जल से
राधा ने धीरे से कहा
चलो बांधो न नांव
नन्द गांव-तट के पीपल की छांव
बात बात में
कट गई रात
बंशी बजी चलती रही नाव।

वृंदावन- का दर्शन

हजारों वर्षों से सजे संवरे, सिंहासन परबैठे
लाल, हरे, पीले, नीले सुन्दर वस्त्रों में सजे
मस्तक पर वैष्णवी तिलक
और हाथ में बांसुरी
जिसके मधुर मनोरम मर्मवेधी स्वर ने
पूरे गोकुल गांव, नन्दगांव, बरसाने यमुना तट,
नन्दन-कानन के आर-पार
गूंजने पर
ग्वाल-बालाएं राधा के संग दौड़ पड़ती थी
अपने प्रिय सखा कान्हा से मिलने पागल-मन
रात के अर्ध प्रहर
कालिन्दी- तट पर
निधि-वन में रचाते थे रास-लीला
हे लला, तुम्हारे नटखटपन
यशोदा मैया, नन्द बाबा, ग्वालबाल
राधा और पंच पांडवों ने झेला जिया
तुमने महाभारत में अधर्म के विरुद्ध
धर्म का ध्वज फहराया
हे गोपी माधव, हे गोविन्द, हे राधारमण
तुमने वंशी के स्वर पर
सारे बरसाने, वृन्दावन को मोहित किया
जीवन पर्यन्त जन-आराध्य बनकर जिया
और आज भी तुम जीवित हो
दोहराने अधर्म के विरुद्ध धर्म युद्ध की प्रक्रिया।

मथुरा-वृन्दावन की कविताएं

हरे कृष्ण महा मंत्र का स्वर,
मृदंग तथा वाद्य यंत्रों के साज पर
इस्कान मंदिर में गूंज रहा
भक्त आत्मविभोर नाच रहे
चारों ओर आनन्दप्रभा से
लोगों के चेहरे खिले हैं
किन्तु, भीतर राग-विराग के अनगिन पैबन्द लगे
मोह, लोभ, स्वार्थ के तरह-तरह के टुकड़ों से सिले हैं।
ऐसे भक्तों की आंखें कहीं हैं
मन कहीं है
फिर भी हरे कृष्ण के स्वर से स्वर मिलाकर
वे नाच रहे, थिरक रहे
जय हरी बोल की कीर्तन में मग्न
जैसे पुण्य कमा कर बैतरणी पार करने का
सरजाम जुटा रहे
इस भव्य मंदिर के प्राचीर में
प्रसाद द्रव्य के भाव पर बिकता है
जीवन तो मुट्ठी भर सिक्ता है।

एक साहित्य-सर्जक की - हिन्दी जगत तथा विश्व के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता देवानन्द को श्रद्धांजलि

तुम निचले तबके से उठ कर
कलात्मक अभिनय की सीढ़ियां चढ़ते गए
और ऊंचाई पर अपने को स्थापित किया।
हिन्दी सिनेमा को अत्यधिक जनप्रिय प्रभावशाली, विश्वजयी बनाया
88 वर्षों तक भारतीय हिन्दी सिनेमा के
दर्शकों पर छाए रहे
और आज अपने देश की धरती से दूर
विलायत में तुम्हारी सांसों के पंख पखेरू उड़ गए
जीवन के अंतिम क्षण में अनन्त से जुड़ गए
तुम्हें मेरा शत-शत प्रणाम। हार्दिक श्रद्धांजलि।
जीत का अंतिम चरण बस क्षय है
सभी मानव जीवन-मरण का अंतिम पड़ाव, अनन्त समय है।

तेलमय भारत, खेलमय सरकारी नीतियां

भारत में महंगाई से आम आदमी पिस रहा है। गलत राजनैतिक नीतियों के कारण तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं। खाद्यानों की कीतमें भी देश के प्रत्येक तबके को प्रभावित कर रहा है। क्या कारण है कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में तेल की कीमत - 26 रुपये, बंगलादेश में 22 रुपये, अफगानिस्तान में 36 रुपये, नेपाल में 34 रुपये तथा वर्मा में 30 रुपये है। वहां महंगाई पर काबू किया जा रहा है, किन्तु हमारे नीति निर्धारक क्यों नहीं महंगाई रोकने के लिए कठिन निर्मय लेते। व्यापार जगत को अधिक छूट देना देश के लिए आत्मघातक है। आज के संदर्भ में उस पर कंट्रोल रखना आवश्यक  है।