Sunday 31 December 2017

राजनीति का कमाल

राजनीति का यह कमाल है
किसी के लिए यह दुनिया हरी
किसी के लिए वासन्ती नारंगी
किसी के लिए लाल है।
           -स्वदेश भारती

उत्तरायण
कोलकाता
1 जनवरी, 2018



सभी प्रियजनों, आत्मीयों, मित्रों, पाठकों, शुभचिन्तकों को 
नव वर्ष 2018 की हार्दिक शुभकामनाएं
नव वर्ष लाए आपके जीवन में नव हर्ष
नई खुशियां, उल्लास, नव उत्कर्ष
आप सुखी रहें और रहें स्वस्थ, सुरक्षित।

                                                                                            -स्वदेश भारती
उत्तरायण
कोलकाता
1 जनवरी, 2018

Friday 29 December 2017

तीन तलाक

कानून से तीन तलाक बन्द हो जाएगा
लेकिन जिन्दगी के
खूबसूरत दिनों की यादों की कसक
दिल को जब कुरेदेगी तब
कानून निहायत छोटा हो जाएगा।

वैवाहिक सम्बन्धों की नाव मुहब्बत और
अटूट दोस्ती की पतवारों से चलती है।
कानून के दम पर नहीं और ना ही स्वार्थ की
सत्ता के अहले कदम पर।
                         -स्वदेश भारती

उत्तरायण
कोलकाता
30 दिसंबर, 2017


प्रेम-कई रूप
प्रेम की संकीर्णता से परे

सार्थक जीवन जीने के लिए
मैंने प्रेम के अर्थ को
कई-कई दृष्टियों से उकेरा
अलग किया मन बुद्धि से
प्रेम की संकीर्णता का मेरा तेरा
एकात्मकता के लिए
बहुत सारे यत्न किए
जब भी भग्न-प्रेम का छाया अंधेरा
एकाकी मौन-व्यथा के
विभिन्न आयाम जिए
पूरे सामर्थ्य और कर्म-निष्ठा के सहारे
रोका है आत्महन्ता अनर्थ को
व्यर्थ का संकट-बोध
हृदय कलश को आंसुओं से भरा
फटे दर्द को अपनत्त्व की सुई से सिया।

                   -स्वदेश भारती
18/1 कैम्पवेल रोड
बेंगलूर-48
17 नवम्बर, 2017

प्रेम जीवन को


सरस, सार्थक, सुन्दर, सौन्दर्य प्रिय बनाता है
किन्तु प्रेम-प्रवंचना,
विश्वासहीनता, झूठ, प्रपंच और
असहिष्णुता का आत्मघाती खेल
भरा-पूरा घर उजाड़ता है,
हृदय माटी में
हताशा, दुःख, दर्द के अंकुर उगाता है।

-स्वदेश भारती
18/1 कैम्पवेल रोड
बेंगलूर-48
18 नवम्बर, 2017

प्यार का अवदान

यह सुन्दर, प्यारी, मनोहारी धरती
सागर, नदियां, झरने, पर्वत-शिखर,
सफेद बादलों से ढकी नीली घाटियों
जंगलों, नयनाभिराम हृश्यावलियों
अनगिन रंग-विरंगे फूलों
विविध फलों से सुसज्जित
हरित भरित शस्य श्यामला
विस्तृत असीम अनन्त आकाश
सूर्य, चन्द्र, तारागण, नक्षत्र, ज्योतिर्मय
सृष्टि में विकीरित करते प्रकाश
देते मानव, चर अचर को नवजीवन
देते अस्तित्त्व-उपहार
प्रकृति का नैसर्गिक प्यार
किन्तु हम हैं कि
सिर्फ लेना जानते हैं, देना नहीं
जीवनपर्यन्त आकांक्षा का बुनते जाल
चाहते आनन्द सुख वैभव अपार
प्यार भरा संसार।

-स्वदेश भारती
18/1 कैम्पवेल रोड
बेंगलूर-48
20 नवम्बर, 2017

प्रेम-सत्य


प्रेम मन का सम्पूर्ण समर्पण है
आत्म-अनात्म-दर्पण है
प्रेम-प्रवंचना, अवहेलना
सर्जित करती हृदय में
संकुचित, निकृष्ट हीन भावना

-स्वदेश भारती
18/1 कैम्पवेल रोड
बेंगलूर-48
21 नवम्बर, 2017

प्रेम-सार

जो कुछ सृष्टि में
सुन्दर, सरस, मनोरम है
उस सब पर प्रेम का आविर्भाव है
जो समय प्रवाह के साथ मिलकर
जीवन पर्यन्त, जन्म से मृत्यु तक
हमें भीतर बाहर प्रवाहित करता
अविरल गतिमय धारा से जोड़ता
यही तो जीवन का अर्थ है
उससे विलग होना
हमारे अस्तित्त्व का अनर्थ है।

-स्वदेश भारती
18/1 कैम्पवेल रोड
बेंगलूर-48
20 नवम्बर, 2017


प्रेम आनन्द

जीवन में प्रेम आनन्द का दूसरा नाम है
प्रेम ही अनहद-नाद, अनन्त, अविराम है
प्रेम ही सचराचर सृष्टि का उदभव और विकास है
प्रेम ही ईश्वर, अल्ला, ईशा का दूसरा नाम है।

-स्वदेश भारती
18/1 कैम्पवेल रोड
बेंगलूर-48
20 नवम्बर, 2017





Wednesday 27 December 2017

जन-हित-चिन्तन


धर्म, राजनीति और विज्ञान ने सारी दुनिया में नए रूपों में उभर कर मानवता के लिए भयानक भय, आतंक, संत्रास, जातिवाद, असहिष्णुता और आत्मनिर्वासन की स्थिति पैदा कर दिया है। यह बहुत चिन्ता का विषय है। 

आदमी अपनी अस्मिता, अपने वजूद को सुरक्षित रख पाने में असमर्थ है। इससे संस्कृति पर उल्टा प्रभाव पड़ रहा है। सभ्यता के मानदंड और मानवमूल्य नष्ट हो रहे हैं।

सभी राजनैतिक दलों, पार्टियों, शासनाध्यक्षों, मठाधीशों, पुजारियों, धर्माध्यक्षों, वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों को आत्मचिन्तन करना है और मानवता के कल्याण के लिए अपनी सोच और कार्यप्रणाली को बदलना है। 


                                                                            -स्वदेश भारती

उत्तरायण
कोलकाता
28 दिसंबर 2017


Tuesday 26 December 2017

जन-हित-चिन्तन


भारत में मीडिया जिस प्रकार राजनैतिक मानसिकता का शिकार हो गया है, उससे नई पीढ़ी गुमराह हो रही है। चैनलों में कुछ बेहतर शैक्षणिक, सांस्कृतिक, सामाजिक सामग्री प्रसारण हेतु उपलब्ध न हो पाने से अनावश्यक राजनीतिक वार्ता, चर्चा, तर्क-कुतर्क, खीझ और ऊब पैदा करता है। आज कल तो समाचार में विज्ञापनों को ठूंस-ठूंस कर दिखाया जा रहा है। समाचार पांच मिनट का तो विज्ञापन पन्द्रह मिनट का। समाचारी-विज्ञापन का यह दौर टीवी देखने वालों के लिए मन मस्तिष्क पर अनचाहा आरोपित मानसिक दंड है। लेकिन चैनलों के इस थोक विज्ञापनी व्यवसाय को भला कौन रोकेगा। आज तो हम जो भी चलताऊ चैनल खोलते हैं, विज्ञापनों की भरमार रहती है। हमारी तरह कई परिवारों में देखा गया है। वे समाचार सुनने के लिये जब भी जो भी चैनल खोलते हैं समाचार में विज्ञापन प्रसारित होते देखकर स्विच अन्य चैनलों पर घुमाते रहते है। सभी पर वही स्थिति देखकर झुंझला जाते हैं। टीवी ही बन्द कर देते हैं। इससे विज्ञापन दाताओं पर उनके प्रचार का उल्टा असर पड़ रहा है।

टीवी चैनलों को साहित्य, संगीत, कला, पुस्तकों, लेखन-प्रकाशन, सांस्कृतिक मूल्यों,  सर्जनात्मक वैचारिक और शैक्षणिक विषयों पर स्वस्थ चर्चा आलोचना करवाना चाहिए। यह आज के समय की मांग है।

                                                                                             -डॉ. स्वदेश भारती

उत्तरायण,
कोलकाता
27 दिसंबर, 2017



आज की राजनीति भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं और मूल्यों को नजरअन्दाज कर अपने और अपनी पार्टी के लिए तोड़ जोड़, झूठ, फरेब, आत्मश्लाघा, मिथ्या, घमंड, छल-कपट, धर्म, जाति का सहारा लेकर समाज और व्यक्ति को तोड़ रही है। देश तथा नई पीढ़ी को अपने मिथ्या वादों से गुमराह कर रही है। सही विचारधारा और तथ्यों से समाज को मोड़ रही है। अपने वोट-बैंक से जोड़ रही है। प्रत्येक राजनीतिज्ञ को भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और अपनी मिट्टी से जुड़ने की जरूरत है। नया भारत-निर्माण के लिए सत्ता परिवर्तन से अधिक सामाजिक बदलाव आवश्यक है।

                                                                                                -डॉ. स्वदेश भारती

उत्तरायण,
कोलकाता
27 दिसंबर, 2017

Monday 25 December 2017

प्रज्ञा की फसल

प्रज्ञा-नदी, चिन्तन की फसल सींचती
किन्तु असमय की झंझा
फसल को सुखा देती
और घनघोर गर्जन, कड़कती दामिनी के बीच
जब मूसलाधार वर्षा, माताल आंधी और ओलों से
फसल क्षतिग्रस्त होती
तब एक लम्बी आह मुंह से निकल पड़ती
और दूसरे क्षण अपनी अस्मिता को
संभालता हुआ फिर से उगाने लगता मन-मस्तिष्क
चिन्तन की नई फसल
और उसकी देख रेख करने लग जाता
कि फिर उसे क्षतिग्रस्तता से बचा सकूं
जो हानि हुई है उसे पचा सकूं।
                         -स्वदेश भारती

उत्तरायण
कोलकाता
3 अप्रैल, 2017


आत्मभाव-वितरण

जितना ही आत्मभाव मुझे तटस्थ रहने
और चिन्ता मुक्त होकर
सकर्मक-पथ पर चलने के लिए साधता है
उतना ही प्रबल आकांक्षा का जाल
मुझे भीतर से बांधता है
ऐसे में मैं अपने संकल्प और विचारों से
अन्तर्मुखी होकर अपने को बदलता हूं
और तब मन और वाणी को नियंत्रित कर
अपने गन्तव्य की ओर आगे बढ़ता हूं-
एक एक पग
ऊंचाई की सीढ़ियों पर रखता
अन्तिम लक्ष्य तक चढ़ता जाता हूं
विघ्न-बाधाओं से बचता बचाता
आत्म-कलश में संचित
चिन्तन-जल की बूंदे
समष्टि को अर्पित करता जाता हूं।

                                               - स्वदेश भारती

उत्तरायण
कोलकाता
4 अप्रैल, 2017


प्रवंचना का जहर

रात के चौथे पहर
स्वप्न से अचानक जागा
अभी अभी तो स्वप्नवत सुन्दर मनोहर
प्राणगर्भा कल्पनाएं परियों जैसी
आह्वदित मन नाच रही थी
ह्रदय-सागर-तट-पर
आरक्त अधरों में छिपी थी
स्वर्णवर्णी उषा की मदिर मुस्कान
उसी तट से ही तो हुआ था प्रारम्भ
यात्रा का नव अभियान
जब छाया था कोलाहल शोर
हाथ में थामे कामना विश्वास की पतवार
सर्जना की नाव को
समय-सागर की
उत्ताल लहरों के चपल आवेग से बचता बचाता
चल पड़ा था लक्ष्य-पथ की ओर
जोरों से हिलोरे लेता रहा है समय-पारावार...

जितना ही आत्मभाव मुझे तटस्थ रहने,
चिन्ता मुक्त होने के यत्न के साथ
सकर्मक-पथ पर चलने की आस्था देता रहा
प्रबल आकांक्षा स्वप्न मेरे भीतर पलता रहा
ऐसे में मैं अपने संकल्प और विचारों से
वहिर्मुखी होता रहा
और मन और वाणी को सुदृढ़ बनाकर
अपने गन्तव्य की ओर आगे बढ़ता रहा
चलाता हुआ चिन्तन की पतवार...
अभीष्ट तक पहुंचने का यत्न करता हुआ
विघ्न-बाधाओं से बचता
आत्म-कलश में संचित
चिन्तन जल की बूंदे समष्टि को
समर्पित करता रहा और सहता रहा
प्राण घातक लहरों का अतिशय उद्‌वेग और विनाशक कहर
रात के चौथे पहर
जब उदविग्न हो रहा था हृदय-पारावार...
खड़े थे कुछ लोग आपनजन, अपरिचित
आत्मीयता सागर-तट-पर
कर रहे थे, चर्चाएं, इशारे
आत्मघाती नजरें छुपाए थके हारे
जिसे मैंने प्रज्ञारोधक माना
आदमी का आदमी के प्रति विद्वेष जाना
और पिया उस आत्मदंशित
प्रवंचना का जहर बार बार
जीवन के चौथे प्रहर
मैंने माना नहीं अपनी हार...
-स्वदेश भारती

उत्तरायण
कोलकाता
5-6 अप्रैल, 2017

क्या खोया क्या पाया

दुख ने अपनत्त्व भुलाया
सुख ने झूला झुलाया
संप्रीति ने पंचम स्वर से गाया
संबंधों ने सूनेपन को सजाया
दुख ने अग्नि-ज्वार बन
हृदय जलाया
अलख सबेरे सोनाली आभा
अन्धकार से भरी डगर को
उजियारे में चलने की सीख सिखाया
एकाकी पथ ने मुझे
करो या मरो का पाठ पढ़ाया
सुप्त चेतना को सोते से जगाया
और सीख दी
चिन्तारहित बनो, अडिग रहो
जग है केवल माया
जीवन होता व्यर्थ यदि मन में रहता पछतावा
फिर इतनी चिन्ता क्यों
क्यों है दुरभि संधि, आत्मग्लानि, छलावा
क्या होगा दुखी सोच से-
क्या खोया, क्या पाया
                        -स्वदेश भारती

उत्तरायण
कोलकाता
7 अप्रैल, 2017

और कितने गीत गाऊं

मन-प्राण के भग्न सितार पर
और कितने स्वर मिलाऊं
और कितने गीत गाऊं
पल-दर-पल
तिल तिल कर प्रदीप की रोशनी सा जला
काले समय के भग्नाशेषों में पला
रंगीनियों से भरा स्वर को साधकर
दुख दैन्य की संगत किया
वेदना की ताल पर
आगत समय का गीत गाया
खुले मन से स्वागत किया
कई-कई बार चेतना के
विविध वाद्य-यंत्रों पर सजाया
नए नए ताल स्वर साध गाया
अनहद नाद पर
मन हृदय को नाचा नचाया
अब समय की शिला पर
और कितने दीप जलाऊं
और कितने गीत गाऊं।
               -स्वदेश भारती

उत्तरायण
कोलकाता
8 अप्रैल, 2017

Tuesday 19 December 2017

आत्ममनोŠवाच

(78वें जन्मदिन पर)


क्या करोगे
रिक्त होगा जब तुम्हारा मन
विदा के क्षण...

एक दिन जब
नियति का प्रारब्ध लेकर
चेतना का भार लादे
लक्ष्य साधे
भंवर का संत्रास सहती
समय-सागर में मचलती
गति बदलती, डोलती तिरती
अकेली आत्मवाही तरी मनहर
आस्था की डोर से बंधकर
बढ़ रही गन्तव्य-पथ पर
मीन-वेधी प्रणति लेकर
आत्मबल से भरी उन्मन
विदा के क्षण...

एक दिन जब विखर जाएगा
सुनहरे प्रीति का संसार
फैलेगा निराशा दुःख का अंधियार
होंगे बन्द सारे हृदय-मन के द्वार
होगा वेदना के गीत का वन्दन
विदा के क्षण...

एक दिन जब घिरेगी अस्तित्त्व की तटिनी
सुनामी-समय के मझधार में
दुःस्वप्न-पारावार में
तब भला वह कौन याराना बनेगा
कौन देगा साथ
उस समय बस आत्मवाही-तरी होगी
राह भी होगी अपरिचित
बचेगा बस एक ही पथ -
ईश का स्मरण
विदा के क्षण...

              -स्वदेश भारती

बैंगलोर
12 दिसंबर, 2017


अनन्ततः

यही अन्त नहीं है
अन्त कहीं नहीं है
जो अन्त है
वही प्रारम्भ भी है

                  -स्वदेश भारती

18/2, कैम्पवेल रोड
बैंगलूर-48
28 नवम्बर, 2017


ईश्वर ने यह कैसा मन बना दिया
उसमें चिड़िया का पंख लगा दिया
और बांध दिया
प्रेम का सुनहरा धागा
जो जीवन पर्यन्त टूटता जुड़ता ही रहता है
न घिसता है, न रिसता है
न बदरंग होता है
भले ही पंख हताहत हो जाए प्रेम-सर से
भले ही रक्तरंजित हो
प्राण वेदना के असर से
मन-पाखी की आकांक्षा कभी पूरी नहीं होती
ना ही प्रेम-पिपासा तृप्त होती
युग पर युग बीत गए
कितने राजा रानी आए गए
प्रेम के तरह-तरह से
मन मस्तिष्क में दुर्ग बनाए
नए से नए
उम्र दर उम्र प्रेम
अपना रंग रूप बदलता रहा
ईश्वर ने छोटे से धड़कते हुए दिल को
एक उपहार देकर उपक्रृत किया
सुन्दर आशावरी रक्तपुष्पी फूल खिला दिया।
                                  - स्वदेश भारती

18/2, कैम्पवेल रोड
बैंगलूर-48
28 नवम्बर, 2017

Friday 15 December 2017

Swadesh Bharati
(For readers, Lovers of my writing, research 
scholers and thinkers etc.)



Started Writing Since 1951 at the age of 11 (Eleven) and upto date I have Written 13808 (Thirteen Thousand Eight Hundred Five) Poems in Hindi out of which published 28 (Twenty Eight) Poetry Collections, 2 (Two) Epics with total of Around 4300 (Four thousand Three hundred) selected Poems, Long Poems also more than 1000 (Poems) Poems Published in different Anthologies, Magazines, Journals etc. in Hindi, Indian and Foreign Languages. During 1951-2017.

More than 9000 (Nine Thousand) Poems, 10 Poetic dance- drama, memoirs, Travelogs etc. unpublished.

Alongwith written 12 (Twelve) Novels in Hindi out of which 8 (Eight) Published, Four in process of publishing, 87 (Eighty Seven) stories published in Hindi/Indian Language Magazines, Journals, Books.

Edited 52 (Fifty Two) works of Authors of Hindi and other Languages.

Editing Rupambara-Hindi Literary Journal since 1965 and edited 158 Issues, Special Number in Hindi and 22 issues, Special Number in English.

My Writing is Still continueing which fills my barren heart and brings me out of agony. Gives light, energy and happiness to my innerself.

Swadesh Bharati
Uttarayan
331, Pashupati Bhattacharya Road
Kolkata-700 041
12 December, 2017


Mail- swadeshb39.google.com
editor@rashtrabhasha.com
Blog –bswadesh.blogspot.com
(M). 91 8240178035
(M) 91 9903635210


                                                

स्वदेश भारती

(सुधी पाठकों, शोधार्थियों, साहित्य प्रेमियों के लिये)
लेखकीय-सूचना



मैंने 11 वर्ष की उम्र यानी 1951 से लेखन की शुरुआत की। 12 दिसम्बर 2017 को मेरे 78वें जन्मदिवस तक 13805 (तेरह हजार आठ सौ पांच) कविताएं, 12 (बारह) उपन्यास, 10 (दस) से अधिक नृत्य नाटिकाएं, 87 (सत्तासी) कहानियां, लगभग 200 (दो सौ) से अधिक निबन्ध, यात्रा वृतांत, संस्मरण आदि लिखे। अब तक कुल 28 (अट्ठाइस) काव्य संकलन, 8 (आठ) उपन्यास  तथा 52 (बावन) संपादित पुस्तकें (हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं तथा अंग्रेजी में) प्रकाशित लगभग 9000 (नौ हजार) कविताएं, 10 नृत्य नाटिकाएं, संस्मरण, आत्मकथा, यात्रा वृतांत आदि अप्रकाशित। 158 (एक सौ अट्ठावन) हिन्दी-रूपाम्बरा-साहित्यिक पत्रिका के 1965 से 2017 तक अंक, विशेषांक तथा अंग्रेजी रूपाम्बरा के 22 (बाइस) अंक, विशेषांक का सम्पादन किया।आज भी मैं प्रतिदिन कविताएं लिखता हूं। कविता लेखन के साथ मेरा अटूट सम्बन्ध ही मेरे जीवन को आज तक भीतर से भरता, पोषित, संवेदित करता आ रहा है। आज भी मैं अपने लेखन-कर्म से जुड़ा हूं। प्रतिदिन कविता तथा अन्य विधाओं पर काम कर रहा हूं। प्रतिदिन का सर्जनात्मक लेखन मुझे जीवन के संघर्ष के बीच त्रासद् विशाद से अन्तर्मन में राहत, सुख और शांति देता आ रहा है तथा समष्टि के प्रति जुड़ने का यत्न भी रहा है। 

                                                                                                 -स्वदेश भारती

उत्तरायण
331, पशुपति भट्टाचार्य रोड
कोलकाता-700 041
12 दिसंबर, 2017

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Monday 11 December 2017

मेरे आत्मीयों, पाठकों, शुभचिंतकों, मित्रों को
मेरे जन्मदिन की बधाई के लिए 
हार्दिक धन्यवाद, शुभेच्छा एवं संप्रीति।
-स्वदेश भारती
                             बैंगलोर
                             12 दिसंबर, 2017