Friday 22 July 2011

खंडित जीवन

सारा जीवन
प्राण-उत्सर्ग इतिहास
बनने का यत्न किया
संभवतः इसीलिए तो
यह जीवन जिया।

खंडित समय
और अन्तर्मन की पीड़ा से
भीतर ही भीतर जब जब व्यथित हुआ
आर्तनाद करते मौन की आंखों के आर-पार
दुःखों का कुहासा बन छाया रहा
और फिर मस्तिष्क के रेत-तट पर
संवेदना के जितने भी
रेत-घर बनाए
उनके सर्जन और आकर्षण का व्यामोह
बांधे रहा अन्तःस्थल में
फिर वही बना प्राण-संवेदना का संकेत-बीज..

प्रवंचना की कलम से
आस्था की इतिहास-कथा लिखी नहीं जाती
संघर्षों की जीवन्तता ही हमें पौरुषेय बनाती
और वही आगे चलने का सबक सिखाती
भविष्य की ओर चलने के लिए
जरूरी है अतीती-मनन।

No comments:

Post a Comment