Tuesday 22 November 2016

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- डॉ. स्वदेश भारती

हिन्दी साहित्य के विशिष्ट रचनाकार
सप्तक के कवि, उपन्यासकार-स्वदेश भारती


महाकवि स्वदेश भारती का 77वाँ वर्ष 12 दिसम्बर, 2016 को उनके निवास-उत्तरायण, 331, पशुपति भट्टाचार्य रोड, कोलकाता-700 041 में मनाया जा रहा है। स्वदेश भारती ने अब तक तेरह हजार आठ सौ कविताएं लिखी है और उनके 28 काव्य संकलन तथा 8 उपन्यास 50 से अधिक संपादित ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। हिन्दी तथा अन्य भारतीय तथा विदेशी भाषा के किसी कवि ने इतनी कविताएं नहीं लिखी। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भी लगभग नौ हजार कविताएं ही लिखी हैं।
स्वदेश भारती की कविताओं से प्रभावित होकर हिन्दी साहित्य के पुरोधा अज्ञेय ने उन्हें ऐतिहासिक चौथा सप्तक में शामिल किया। हरिवंश राय बच्चन द्वारा संपादित हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ कविताएं में श्री भारती को शामिल किया गया। इसके अतिरिक्त हिन्दी के अनेक काव्य-संकलनों, पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताएं, आलेख, कहानियां प्रकाशित हुई है।
कविवर स्वदेश भारती ने अपने लेखकीय जीवन का प्रारम्भ 12 वर्ष की उम्र से शुरू किया और 65 वर्षो से उन्होंने सतत साहित्य साधना की है। अनेक साहित्य आन्दोलनों के साथ वे तटस्थ भाव से जुड़े रहे। किसी दल विशेष अथवा साहित्य-गोत्र में शामिल नहीं हुए। श्री भारती हिन्दी भाषा साहित्य के व्यापक प्रचार प्रसार के लिए राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी के मंच से संस्था के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में संयोजित, संचालित 28 अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन आयोजित देश के विभिन्न प्रान्तों तथा विदेश में हुए। इसी के साथ 28 अन्तरराष्ट्रीय भाषा साहित्य संगोष्ठयां सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई तथा देश विदेश के 124 विशिष्ट लेखकों को सम्मानित किया गया।
कविवर भारती प्रत्येक दिन कविताएं लिखने के बाद ही नास्ता लेते हैं। यह सतत 65 वर्षों से अबाधगति से चल रही है। आज भी वे उतने ही कर्मशील हैं जैसा युवा अवस्था में रहे। उनकी 13 हजार से अधिक कविताओं में से लगभग तीन हजार पांच सौ कविताएं ही 28 काव्य संकलनों में प्रकाशित हुई हैं। उनकी कविताएं विश्व के श्रेष्ठ कवियों की रचनाओं में श्रेष्ठ करार की गई है। वे आधुनिक सर्जनात्मक बोध और नवचेतना के श्रेष्ठ कवि हैं।
कविवर भारती को सौ से अधिक श्रेष्ठ राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय सम्मान, पुरस्कार प्राप्त हुए। 8वें विश्व हिन्दी सम्मेलन, न्यूयार्क में उन्हें हिन्दी का विशेष सम्मान विश्व हिन्दी सम्मान प्रदान किया गया। श्री भारती ने हिन्दी भाषा साहित्य को देश, विदेश में आगे बढ़ाया है।
कविवर भारती द्वारा रचित श्रेष्ठ कृति महाकाव्य-सागरप्रिय, जयशंकर प्रसाद की कामायनी (महाकाव्य) के 100 वर्षों के बाद प्रकाशित हुई है, जो हिन्दी साहित्य की अपूर्व घटना है। सागर प्रिया, (महाकाव्य) कई भारतीय भाषाओं तथा अंग्रेजी में अनूदित प्रकाशित हुई है। इस महान कृति पर हिन्दी के चालीस विशिष्ट आलोचकों ने समीक्षात्मक आलेख लिखे जो सागरप्रिया-मूल्यांकन शीर्षक के नाम से प्रकाशित हुई है।
कविवर स्वदेश भारती का जीवन एक सर्जनात्मक साधक का जीवन रहा है। और वे हिन्दी के तटस्थ रचनाकार हैं। सतहत्तर वर्ष की उम्र में भी वे लगातार सर्जनात्मक लेखन से जुड़े हुए हैं।

परिचय

                                                      स्वदेश भारती

हिन्दी के सुपरिचित कवि, उपन्यासकार, सर्जनात्मक साहित्य के श्रेष्ठ रचनाकार, कई आधुनिक काव्य-आन्दोलनों के प्रवर्तक, हिन्दी भाषा-साहित्य को देश विदेश में प्रचारित-प्रसारित करने के लिए 50 वर्षों से अधिक समय से प्रतिबद्ध और समर्पित, राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं साहित्यिक हिन्दी पत्रिका रूपाम्बरा के मुख्य संपादक, वरिष्ठ पत्रकार, भाषाविद्, देश विदेश में अनेकों सम्मानों से सम्मानित, लगभग 100 पुस्तकों के लेखक, साहित्य, शिक्षा एवं समाज की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए डॉ. स्वदेश भारती को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
श्री भारती 12 वर्ष की उम्र से कविताएं लिखना प्रारम्भ किया। उनकी कविताओं से प्रसन्न होकर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने वर्ष 1956 में स्वदेश भारती नामकरण किया। 1955 में जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर विनोबा भावे के भू-दान यज्ञ में भाग लेने पंढ़हरपुर (महाराष्ट्र) चले गए। कुछ दिनों तक डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित होकर समाजवादी आंदोलन से जुड़े। फिर पश्चिम बंगाल कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन चले गए और साहित्य सृजन में पूरी तरह जुट गए।
हिन्दी साहित्य के पुरोधा कविवर अज्ञेय द्वारा सम्पादित ऐतिहासिक सप्तक के कवि, उपन्यासकार, स्वदेश भारती की कविताओं ने स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कविता को आधुनिक भाव-बोध एवं नए आयाम दिए हैं। उनके उपन्यासों में भी नए शिल्प, नए कथा-परिवेश की व्यापकता है। उनकी रचनाएं प्रकृति, मानव-प्रेम, जीवन-अस्तित्व के प्रति आस्था व्यक्त करती हुई विस्तृत दायरे में अपना परिचय कराती हैं। श्री भारती का जन्म रायगढ़, प्रतापगढ़ (उ.प्र.) में हुआ। उन्होंने आईकेएम इन्टर कॉलेज, आनापुर, इलाहाबाद, इविंग क्रिश्चियन कालेज, इलाहाबाद, चारुचन्द कालेज कलकत्ता में शिक्षा ग्रहण किया। अन्नामलाई विश्वविद्यालय, चेन्नई से एम.ए. जन प्रशासन की परीक्षा उत्तीर्ण की। स्कूल आफ ह्यूमनिस्टिक एंड कल्चरल स्टडीज, रामकृष्ण मिशन कलकत्ता से अंतराष्ट्रीय धर्म एवं दर्शन में उच्च शिक्षा प्राप्त की। श्री भारती 1958 से कलकत्ता में रह रहे हैं। उन्होंने नगर यंत्रणा को भोगा और अनुभव किया है। इसलिए महानगरीय बोध, संघर्ष, संत्रास उनकी अधिकांश रचनाओं में अभिव्यक्त हुआ है। उनका संबंध देश तथा विदेश के विभिन्न भाषाओं के लेखकों, कवियों के साथ रहा है तथा उन्होंने भारत तथा विदेशों में सर्वाधिक यात्राएं की है। इससे उनका अनुभव जगत-समृद्ध एवं विस्तृत हुआ है। उनकी रचनाएं क्षेत्रीयता से परे हैं तथा वे मुक्त आकाश तथा स्वतंत्र चिंतन, लेखन के पक्षधर हैं। श्री भारती के 28 काव्य संकलन 8 उपन्यास तथा 50 से अधिक संपादिक ग्रंथ इस बात के द्योतक हैं कि वे रचना-कर्म की निरन्तरता से जुड़े हैं। वे लगभग 40 वर्षों से प्रतिदिन कविता लिखते हैं। अब तक 13000 से अधिक कविताएं लिखी हैं। वे मनुष्य की आस्था, मर्यादा, जागतिक-प्रेम, सद्‌भाव एवं विश्वशांति के प्रति आग्रही रहे हैं। औरतनामा उपन्यास पर उन्हें वर्ष 1988-89 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान (उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा प्रेमचन्द पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वर्ष 1989 में उन्होंने निदेशक मंडल के सदस्य के रूप में इंटरनेशनल चिल्ड्रेन्स कम्युनिटी फाउंडेशन की बैठकों में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरीका की यात्रा के दौरान कई साहित्य-संगोष्ठियों में भाग लिया। वर्ष 1999 में छठा विश्व हिन्दी सम्मेलन, लंदन में समकालीन हिन्दी कविता तथा पत्रकारिता विषयक संगोष्ठियों की अध्यक्षता की। वर्ष 2001 में उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान से अलंकृत किया गया। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी विश्व विद्यालय प्रयाग द्वारा साहित्य महोपाध्याय (डी.लिट) की उपाधि द्वारा अलंकृत किया गया। 1983 में पूर्वांचल कवि सम्मेलन, कूच बिहार पश्चिम बंगाल द्वारा श्रेष्ठ कृति-सम्मान, मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद द्वारा विज्ञान भवन, दिल्ली में हिन्दी सेवा सम्मान प्रदान किया गया। 2004 में ओडिसी नृत्य मंडल कटक तथा चन्द्रभागा उत्सव, बालेश्वर (ओडिशा) द्वारा सम्मानित। 2005 में राष्ट्रीय शिक्षक तकनीकी प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल, मध्य प्रदेश लेखक संघ, मध्य प्रदेश लेखिका संघ, भोपाल, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, तमिलनाडु हिन्दी अकादमी आदि संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया। प्रधानमंत्री जी की अध्यक्षता में गठित केन्द्रीय हिन्दी समिति के माननीय सदस्य तथा वस्त्र मंत्रालय, हिन्दी सलाहकार समिति, ऊर्जा मंत्रालय, हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रहे। राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी के संस्थापक एवं अध्यक्ष हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के व्यापक प्रचार-प्रसार एवं उन्नयन हेतु 50 वर्षों से अधिक समय से सतत कार्यरत। 49 वर्षों से रुपाम्बरा साहित्य-पत्रिका का संपादन। अब तक 133 अंक प्रकाशित। भारत सरकार द्वारा 13-15 जुलाई 2007 को 8वां विश्व हिन्दी सम्मेलन-न्यूयार्क, अमरीका में हिन्दी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए विश्व हिन्दी सम्मान द्वारा सम्मानित, कलकत्ता की सुप्रसिद्ध साहित्यिक संस्था-मिलन मंदिर द्वारा 14.10.2007 को सम्मानित एवं नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा देवरिया (उ.प्र.) द्वारा दिनांक 14.09.2008 को नागरी रत्न सम्मान द्वारा विशेष सम्मान, दिनांक 26.05.2009 को लिटरेरी क्लब, भिलाई इस्पात संयंत्र ने प्रमोद वर्मा साहित्य सम्मान एवं छत्तीसगढ़ हिन्दी लेखक सम्मेलन ने दिनांक 28.05.2009 को पंडित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला सद्भावना साहित्य सम्मान द्वारा विभूषित किया। 29 अगस्त 2010 को हैदराबाद में साहित्य-पत्रिका गोलकोण्डा दर्पण तथा गीत चांदनी ने सम्मानित किया। 4 अक्टूबर 2010 को पांडिचेरी में पांडिचेरी के महामहिम उप राज्यराज्य ले.जे. इकबाल सिंह ने अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में सम्मानित किया। कलकत्ता की साहित्यिक संस्था कवितीर्थ साहित्य अकादमी ने दिनांक 31.12.2011 को विशिष्ट साहित्य सम्मान द्वारा विभूषित किया। दिनांक 20.12.2013 को भारतीय वांङ्गमयपीठ, कोलकाता तथा हिमाक्षरा साहित्य परिषद वर्धा ने सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया। 15.08.2015 को रायपुर की ग्यारह संस्थाओं ने संयुक्त रूप से मिलकर सम्मानित किया।
श्री भारती ने देश, विदेश में आयोजित किए गए 28 अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलनों, अंतर्राष्ट्रीय भाषा साहित्य संगोष्ठियों, कार्यशालाओं आदि का सफलतापूर्वक संयोजन, संचालन किया जिसे सर्जनात्मक हिन्दी तथा भारतीय भाषा साहित्य के संवर्धन, उन्नयन एवम् प्रचार-प्रसार के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान माना गया है।
                                                                                     -राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी द्वारा प्रचारित-प्रसारित