Tuesday 26 December 2017

जन-हित-चिन्तन


भारत में मीडिया जिस प्रकार राजनैतिक मानसिकता का शिकार हो गया है, उससे नई पीढ़ी गुमराह हो रही है। चैनलों में कुछ बेहतर शैक्षणिक, सांस्कृतिक, सामाजिक सामग्री प्रसारण हेतु उपलब्ध न हो पाने से अनावश्यक राजनीतिक वार्ता, चर्चा, तर्क-कुतर्क, खीझ और ऊब पैदा करता है। आज कल तो समाचार में विज्ञापनों को ठूंस-ठूंस कर दिखाया जा रहा है। समाचार पांच मिनट का तो विज्ञापन पन्द्रह मिनट का। समाचारी-विज्ञापन का यह दौर टीवी देखने वालों के लिए मन मस्तिष्क पर अनचाहा आरोपित मानसिक दंड है। लेकिन चैनलों के इस थोक विज्ञापनी व्यवसाय को भला कौन रोकेगा। आज तो हम जो भी चलताऊ चैनल खोलते हैं, विज्ञापनों की भरमार रहती है। हमारी तरह कई परिवारों में देखा गया है। वे समाचार सुनने के लिये जब भी जो भी चैनल खोलते हैं समाचार में विज्ञापन प्रसारित होते देखकर स्विच अन्य चैनलों पर घुमाते रहते है। सभी पर वही स्थिति देखकर झुंझला जाते हैं। टीवी ही बन्द कर देते हैं। इससे विज्ञापन दाताओं पर उनके प्रचार का उल्टा असर पड़ रहा है।

टीवी चैनलों को साहित्य, संगीत, कला, पुस्तकों, लेखन-प्रकाशन, सांस्कृतिक मूल्यों,  सर्जनात्मक वैचारिक और शैक्षणिक विषयों पर स्वस्थ चर्चा आलोचना करवाना चाहिए। यह आज के समय की मांग है।

                                                                                             -डॉ. स्वदेश भारती

उत्तरायण,
कोलकाता
27 दिसंबर, 2017



आज की राजनीति भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं और मूल्यों को नजरअन्दाज कर अपने और अपनी पार्टी के लिए तोड़ जोड़, झूठ, फरेब, आत्मश्लाघा, मिथ्या, घमंड, छल-कपट, धर्म, जाति का सहारा लेकर समाज और व्यक्ति को तोड़ रही है। देश तथा नई पीढ़ी को अपने मिथ्या वादों से गुमराह कर रही है। सही विचारधारा और तथ्यों से समाज को मोड़ रही है। अपने वोट-बैंक से जोड़ रही है। प्रत्येक राजनीतिज्ञ को भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और अपनी मिट्टी से जुड़ने की जरूरत है। नया भारत-निर्माण के लिए सत्ता परिवर्तन से अधिक सामाजिक बदलाव आवश्यक है।

                                                                                                -डॉ. स्वदेश भारती

उत्तरायण,
कोलकाता
27 दिसंबर, 2017

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