Tuesday 9 January 2018

          जन-चिन्तन

1) यह जरूरी है-
हम आत्मविश्लेषण करे
कि हमने कितना गंवाया
कितना पाया
और यह भी कि
कैसे कितना गंवाया
कैसे कितना पाया।
                -स्वदेश भारती

उत्तरायण-कलकत्ता-41
1 जनवरी, 2018

2) देने में जो आत्म-सुख होता है
पाने में नहीं होता
क्योंकि देने वाले बहुत कम लोग होते हैं
और पाने वाले बहुत सारे हैं।
                          -स्वदेश भारती

उत्तरायण-कलकत्ता-41
2 जनवरी, 2018

3) जो जरूरतमन्दों की मदद करते हैं
वही सच्चे ईश्वर भक्त होते हैं
दूसरों की सहायता करना ही
ईश्वर की असली पूजा है।
                                  -स्वदेश भारती

उत्तरायण-कलकत्ता-41
3 जनवरी, 2018

4) महात्मा का कठिन कर्म
क्षण और समय की पावंदी है
जो लक्ष्य प्राप्त करने के मुख्य साधन हैं
कुछ ऐसे भी महात्मा होते हैं
जो लक्ष्य-पथ पर चलते चलते थक कर
हारी मान लेते हैं
वे अपने जीवन की
सार्थकता खोते हैं।
                                      -स्वदेश भारती
उत्तरायण-कलकत्ता-41
4 जनवरी, 2018

5) ज्ञान, कर्म और धर्म का अटूट नाता है
जो ज्ञान से विलग होकर धर्म में आस्था रखते हैं
वे बहुत शीघ्र धर्म की सीढ़ियों से
फिसल कर निराशा के अन्धकूप में गिरते हैं।
                                                        -स्वदेश भारती

उत्तरायण-कलकत्ता-41
5 जनवरी, 2018

6) ज्ञान बुद्धि और भक्ति से
शरीर की सारी नौ इन्द्रियों को
वश में किया जा सकता है
किन्तु मन की चंचलता को नियंत्रित
करना कठिन काम होता है।
                                              -स्वदेश भारती

उत्तरायण-कलकत्ता-41
6 जनवरी, 2018

7) आदमी अपने कठोर परिश्रम और
उच्च महत्त्वाकांक्षाओं से इतिहास बनाता है
वही आलस और अकर्म से
आदमी होने से नीचे गिर जाता है।
                                                         -स्वदेश भारती

उत्तरायण-कलकत्ता-41
7 जनवरी, 2018

8) आत्मलोभ और असहिष्णुता से
समाज में पैदा होती है विषमता
प्रेम, करुणा और त्याग से
जीवन और समाज में आती है समरसता।
                                         -स्वदेश भारती

उत्तरायण-कलकत्ता-41
8 जनवरी, 2018

9)             मनुष्य और स्त्री


विधाता ने सृष्टि चलाने के लिए
मनुष्य और स्त्री की रचना की
पुरुष, नारी के लिए आचार संहिताएं बनाई
प्रेम, समर्पण, त्याग, करुणा, दया, ममता के
अनेको आचार, विचार, व्यवहार बनाए
फिर भी मनुष्य और स्त्री ने, आजादी-
स्वच्छन्द जीवन की गुहार लगाती रही
और आज भी वही सब कुछ चल रहा है।
                                   -स्वदेश भारती
उत्तरायण-कलकत्ता-41
9 जनवरी, 2018


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