Monday 16 October 2017

मैं अकेला ही चलूंगा

भले ही भीड़ लगाकर
लोग देखते रहे
समय-सागर-तट पर खड़े होकर
मैं अकेला ही चलता रहूंगा
अगाध समुद्र की उत्ताल लहरों में डोलती
नाव हिचकोले लेती रही
और लोग तालियां बजाते रहे
तरह तरह की भाव भंगिमाएं बनाते रहे
मन की डफली बजाते रहे
बेसुरे गीत गाते रहे
परन्तु मैं विचलित हुआ नहीं
निर्दिष्ट पथ पर चलता रहा
समय-सागर चाहे जितना उफनता रहे
पागल हवा चाहे जितनी शक्ति से बहे
भवितव्य की आशा और विश्वास लिए
पौरूष और आत्मबल की पतवारें साधे
अपने सम्पूर्ण स्वत्त्व को लक्ष्य में बांधे
मैं चलता रहूंगा
जिस वर्तमान ने मुझसे छलावा किये
दुःख और आंसू दिये
संबंधों की प्रवंचना देकर
घर उजाड़ दिए
वही सब अतीत बन गया।
परन्तु मैं अपनी टूटी नाव के साथ
आगे बढ़ता ही रहूंगा।
मैं अतीत को छोड़ चुका हूं
यद्यपि कि वर्तमान भी
पलभर में अतीत बन जाता है
अतीत और इतिहास के सभी संदर्भ
आदमी भूलता जाता है
संभवतः वर्तमान या अतीत
अथवा दोनों ही देश-काल से
मुक्त हो जाते हैं
यह सत्य है कि समय-असमय के बाद
नये समय का दौर आता है
भले ही कितने भी संकट आएं
मैं अपने पथ पर चलता रहूंगा
सिर नहीं झुकाऊंगा
अकेला ही आगे बढ़ता जाऊंगा
लोगों का क्या
लोग तो अन्दर बाहर की
समस्याओं में जीवनपर्यन्त
जाने अनजाने उलझते रहते हैं
फंसते रहते हैं
निजता और आत्मलोभ की
बांसुरी बजाते हैं
समय-सागर-तट पर आते जाते विलुप्त हो जाते हैं
प्रवंचना के जाल बनाकर
स्वार्थ की मछलियां मारते हैं
उनकी परवाह किए बिना
मैं अपनी भग्न नाव पर
स्मृतियों का पाल चढ़ाकर
अकेला ही आगे बढ़ता जाऊंगा।

                      -स्वदेश भारती
उत्तरायण, कोलकाता
21-24 सितंबर, 2017


राजनीति के छन्द

राजनीति अपनी घोर अनैतिकता, आत्म-लिप्सा
और निजता की अहंवादी मानसिकता से
नयी पीढ़ी को गुमराह कर
प्रभावित कर रही हैं
इसके कारण सामाजिक मान्यताएं
बुरी तरह बिखर रहा है
सांस्कृतिक मूल्यों पर प्रहार हो रहा है
इससे देश अपनी अस्मिता खो रहा है
सत्तावाद ही वर्तमान की जमीन में
विष-बीज बो रहा है।

                       -स्वदेश भारती
उत्तरायण, कोलकाता
25 सितंबर, 2017


धर्म, ईश्वर और सन्यासी

आज तो धर्म लोभलाभी यंत्र बन गया है
जो सन्यासी, साधु, संत, महात्माओं का मंत्र बन गया है
आत्मलोभ, अनात्म-चिंतन-अनुरंजन
आदमी के लिए महा-खडयंत्र बन गया है
आस्था और विश्वास का सेतु टूट रहा है
अधर्म साधारण मनुष्य को लूट रहा है।

                                -स्वदेश भारती
उत्तरायण, कोलकाता
26 सितंबर, 2017


विचार-आचार

तनिक रूको, सोचो
तब आगे बढ़ो
रास्ता स्वयं कहीं जाता नहीं
वह तो रास्ते पर चलनेवाले पथिक को
लक्ष्य तक पहुंचाता है
देख देखकर चलो
और चौकस होकर सीढ़ियां चढ़ो
सही और गलत
सत्य और असत्य का विश्लेषन करो
विनार्थ चिन्ताग्रस्त होकर
अपने बाल मच नोचो
तनिक रुककर आत्मान्वेषण करो
तब आगे बढ़ो
समय की रफ्तार समझो
और अपने को संयोजित करो
तुम्हारे विरुद्ध जो भी षडयंत्र
पंख फैला रहे हैं
उनकी नीयत को बूझो
तनिक रुको
तनिक सोचो
आत्मानुशासन, संयम
और समष्टि के प्रति समर्पण
दाय-भाव-बोध का अर्थ गुनो
मेरी बात सुनो, सोचो
तब आगे बढ़ो।

                 -स्वदेश भारती
उत्तरायण, कोलकाता
27-28 सितंबर, 2017


दो शब्द

सही सोच और कर्तव्य परायणता ही
मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुंचाती है

                                 -स्वदेश भारती
उत्तरायण, कोलकाता
29 सितंबर, 2017


एक मंत्र और

असमय की दुर्भिक्षदायक विनाशक, तूफानी
और अनियंत्रित हवा से सावधान रहना है
सारे कष्ट सहना है
किन्तु आत्म-बोध की तरी
समय-सागर में साधे रहना है
प्रज्ञा और आत्म विश्वास से
अपने अभीष्ट तक पहुंचना है।

                       -स्वदेश भारती
उत्तरायण, कोलकाता
30 सितंबर, 2017

No comments:

Post a Comment