देश-काल
ये कैसे हैं देश के रहनुमा
जो लोभलाभी राजनीति के गुर सिखा रहे हैं
आमजन का मत हासिल करने के लिए
विकास का अन्धा आईना दिखा रहे हैं
देश मूक भाव से देख रहा छद्म चरित्र और अनाचार
भूख, अभाव, आत्महत्या, धार्मिक उन्माद, व्यभिचार
अपसंस्कृति देश की धरती पर विष-बीज बो रही
इंसानियत ठगी सी हाथ मलती रो रही
काले कारनामों का खुला बाजार है
देश की जनता ठगी-सी लाचार है
आजादी के 70 सालों में
जनमत के दिन आते रहे, जाते रहे
तरह तरह के लोग आत्मलोभ की
डफली बजाते रहे, गाते रहे।
-स्वदेश भारती
(मो.) 9903635210
918240178035
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