Tuesday 28 June 2011

जीवन और कर्म

समय-असमय का घात-प्रतिघात
हमें नित्य छलता है
अपने साथ नित नए ऋतुओं के
परिवर्तन लिए चलता है
पीली पत्तियों के आहत
निर्मूक-क्रन्दन के बीच मैने जाना
कि समय के साथ चलने के लिए
कर्मठता की उजास चाहिए
आशा और विश्वास चाहिए
अन्यथा हमारी यात्रा
अस्तित्व-भार ढोने की
मजबूरी है
जीवन और कर्म की यही दूरी है

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