समय-असमय का घात-प्रतिघात
हमें नित्य छलता है
अपने साथ नित नए ऋतुओं के
परिवर्तन लिए चलता है
पीली पत्तियों के आहत
निर्मूक-क्रन्दन के बीच मैने जाना
कि समय के साथ चलने के लिए
कर्मठता की उजास चाहिए
आशा और विश्वास चाहिए
अन्यथा हमारी यात्रा
अस्तित्व-भार ढोने की
मजबूरी है
जीवन और कर्म की यही दूरी है
हमें नित्य छलता है
अपने साथ नित नए ऋतुओं के
परिवर्तन लिए चलता है
पीली पत्तियों के आहत
निर्मूक-क्रन्दन के बीच मैने जाना
कि समय के साथ चलने के लिए
कर्मठता की उजास चाहिए
आशा और विश्वास चाहिए
अन्यथा हमारी यात्रा
अस्तित्व-भार ढोने की
मजबूरी है
जीवन और कर्म की यही दूरी है
No comments:
Post a Comment