Saturday 25 June 2011

आजादी की कामना

एक चिड़िया पिंजड़े में बन्दी
पिंजड़े में पानी पोसी गई
पिंजड़े में ही हुई बड़ी
और उसके भीतर
उड़ने की आकांक्षा ने स्वप्निल परों पर लिख दिया-
रोशनी भी उड़ती है उन्मुक होकर
दूर-दूर दिगन्त के आर-पार
पर रोशनी भी
अपने वृत्त में रहती बंधी
सतरंगी घोड़े पर सवार
सदा ही अंधरे को चीर कर
उड़ना चाहती।
न उड़ पाने की असमर्थता है उसकी व्यथा
सबेरे की धूप भी लिखती है
तरु पत्रों पर
समय-परिवर्तन-कथा
धूप-कथा से ओजस्वित
पिंजड़े में बन्द चिड़िया
फड़फड़ाने लगी अपने पंख
और एक अच्छी लग्न में

No comments:

Post a Comment