Tuesday 30 August 2011

अन्ना हजारे और आजादी का दूसरा आंदोलन

भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे का जन लोकपाल बिल-आंदोलन स्थगित सफलता के साथ हो गया। आजादी के 64 वर्षों में यह पहली बार इतना बड़ा आंदोलन हुआ। यह दूसरी आजादी का जन आंदोलन था। भारत के शहरों, कस्बों, गांवों में लाखों लोगों, विशेष कर युवा वर्ग का समर्थन इस बात का सबूत है कि हम अपनी आजादी की रक्षा करने में सक्षम हैं। भ्रष्ट नेताओं के लोभ और भ्रष्टाचार से आमजन को बचाया जा सकता है। मैं युवा शक्ति के जोश और जन लोकपाल के समर्थन के लिए आभार प्रकट करता हूं। तूभी अन्ना, मैं भी अन्ना, भारत माता की जय, बन्दे मातरम, इन्किलाब-जिन्दाबाद के नारों से झूमता हुआ हुजूम बच्चे, युवक, बूढ़े, खेतिहर किसान, मजदूर हर तबके के भारतवासी लाखों की संख्या में पना समर्थन देने आगे आए इससे हमारा जनतंत्र मजबूत हुआ है, परन्तु राजनेताओं पर जैसे गाज गिर गई। वे हर तरह से इस आंदोलन के विरोध में दांवपेंच लगा रहे हैं। अन्ना समर्थकों, सहकर्मियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात किया जा रहा है। कोई भी भारतीय नागरिक संसद के बाहर अपनी बात जनता के सामने रख सकताहै। यह संविधान के विरुद्ध नहीं। संसद  में यदि कोई माननीय संसद सदस्य के विरुद्ध अनर्गल बातें करता है। तो वह संसद विशेषाधिकार के अन्तरग्त आता है। परन्तु संसद के बाहर जनता अपने जनप्रतिनिधियं के गलत तौर तरीकों पर कटु वचन कहता है तो उसे विशेषाधिकार के दायरे में लाना उचित नहीं लगता। परन्तु गांधीवादी अन्ना हजारे और उनकी टीम के विरुद्ध कोर्ट सन्निपात मानसिक रोगी अनर्गल बातें करता, उनका फंसाना स्वस्थ दी जनतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।
अभी तो अन्नाजी अस्पताल से भी बाहर नहीं निकले। हम जुट गए आरोप-प्रत्यारोपों के जंगल में। इसी दिशा में बातें बढ़ी तो हम मूल मुद्दे से भटक जायेंगे! आपसी धींगा मुश्ती में उलझ कर भ्रष्टाचार हटाने की बात गौण कर बैठेंगे। व्यक्तिगत मान-अपमान को पीछे रख राष्ट्रीय सम्मान पर जोर देना समय की मांग है।

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