प्रिय देशवासियों, समाचार चैनलों
के प्रभारी,
यह कितनी अजीब बात है कि
राष्ट्रीय समाचार चैनल अब विज्ञापन चैनल बन गए हैं। खबरों से ज्यादा विज्ञापन
दर्शकों को परोसे जाते हैं। इससे दर्शक ठगे जा रहे हैं और अब पिछले तीन महीने के
आंकड़ों के अनुसार 28 प्रतिशत दर्शक समाचार चैनलों से मुंह मोड़ने लगे हैं। भोंडी
राजनीति, हत्या, आत्महत्या, बलात्कार जैसी खबरों से चैनल रात दिन चलते हैं और उससे
अधिक विज्ञापनों से व्यापारिक मंशा पूरी करते हैं। चैनलों पर संस्कृति, नैतिकता,
भारतीयता, राष्ट्रीयता, एकता, अखंडता, सौहार्द्र से संबंधित खबरों का अभाव क्यों
है। लगता है वैचारिक विपन्नता से प्रायः सभी चैनल ग्रसित हैं जो देश के लिए बहुत
बड़ा खतरा है। आज हमें बाहर की स्वच्छता से बढ़कर अपने अंदर की स्वच्छता पर ध्यान
देना अति आवश्यक है।
-स्वदेश भारती
साहित्यकार
राष्ट्रीय अध्यक्ष
राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी
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