Thursday 12 January 2012

अन्ना ने दिया देश-गान स्वर

अन्न ने दिया देश-गान-स्वर
बोलो - भारत माता की जय
इन्कलाब-जिन्दाबाद
भ्रष्टाचार के विरुद्ध करना है संघर्ष
होकर निडर
 इस नए वर्ष
                                   - 08.01.2012


आकाश-खेला के आयाम
मैं प्रत्यूष वेला के
आलो-छाया में डूबे आकाश को
रोग-सैया पर अधलेटा
अधखुली खिड़की से देख रहा,
कलकत्ता में अधिकांश लोग  सोए हैं अभी
अथवा अपनी खुमारी हटाने के लिए
चाय के प्याले खनखनाते होंगे
रास्ते खाली पड़े हैं
यातायात थमा हुआ है
रह रहकर आकाश में नीचे उतरते, पंख फैलाए
हवाई जहाज की आवाजें
आकाश के मौन को तोड़ती हैं
अथवा किसी वाहन के तेजी के साथ गुजरने के शब्द
कानों में आते हैं
सोचता हूं, यह आकाश, ये रास्तें, गलियां, सड़कें
सम्बन्धों और दिनचर्या के कितने सारे तार जोड़ती हैं
गांवों से नगरों तक
इस देश से अन्ना देशों तक
मनुष्य कितने सारे उपायों, कारनामों से
अपने सपने पूरे करते हैं
यही वह आकाश है अपनी अखंड नीलिमा में फैला अनन्त
मौन, शान्त, अविभ्रान्त, अभ्रिय मान
जो सर्जित करता बादल, हवा, तूफान
सागर की लहरों को बुलाता आ आ आ
युगों से रखता आया है अपना अस्तित्व अक्लान
दिखाता है सबेरे से शाम और रात में भी
अपना उल्लास अनस्वर नित नए रूप
विविधवर्णी खेला के...
                                 दिनांक - 09.01.12

रिक्त मन की चाह
अजनवी सी तुम हृदय आरण्य के आरपार
ज्योत्स्ना ज्योतित संघन अमराइयों सी
प्राण-अन्तस को धनुष की डोर बन कर
तानती, टकॉर करती
प्रेम-सर संघान करने के लिए
आंख के कितने प्रलोभन दिए
तुम मदिर मधु-गंध सी मादक हवा बन बह रही
आह, कितनी बार भूला राह
अन्तर में धिरे अंधियार में
तुम धूप बनकर आ गई
भरने अचानक रिक्त-मन की चाह।
                     दिनांक - 10.01.2012



शब्द-सत्ता
वह कौन था जिसने गहन सन्नाटे के बीच
प्रथम शब्द 'ओम् ' का नाद किया
हवा, रोशनी, जल, पृथ्वी, आकाश के
विविध आयामों से,
मन, बुद्धि, ज्ञान, विज्ञान के अनन्त स्रोतों से जोड़ा
हमें प्रेम और कर्म के विविध मंत्र दिए
शब्द स्वर-गान से परिचय कराया
आखिर वे आदि पुरुष कौन थे
जिन्होंने जन्म लेने पर शिशु रुद्न के रूप में प्रथम शब्द दिए
और पग-पग पर
शब्द-ज्ञान, धर्म-अधर्म, कर्म-अकर्म की समझ
जीवन जीने के मर्म समझाए

आखिर वे कौन थे
जिन्होंने वेद, ब्रह्म, परामन भाव-संवेदना के
विविध रुपों से परिचय कराया
नए नए सपने गढ़ने
महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के नए नए गुरु सिखाए

मैं खोज खोज कर हार गया
और नए नए पथ -अन्वेषण, संयोजन के समय
यही पाया कि
जिसे अनन्काल से खोज रहा था
वह तो हमारे भीतर ही है समाया।

      दिनांक - 11.01.2012

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