Thursday 4 April 2013

मैं शब्दों को सहेजकर रखूंगा

मैं शब्दों को सहेजकर रखूंगा
सुरक्षित, अनाहत
चाहे जैसी स्थित हो
चाहे जैसा हो गन्तव्य पथ श्लथ रक्त लत पथ...

मैं शब्दों को सहेजकर रखूंगा
तन के शिथिल, अशक्त होने पर मन के शीशे समय के थपेड़ों से टूक टूक हो जाने पर
धन के न रहने पर
संबंधों की डोर टूट जाने पर, हर हाल में..


मैं शब्दों को सहेजकर रखूंगा
शब्दों से सज्ञान होने के साथ-साथ यारी की
उन्हें ही अपनी निजता का वन्धु माना
इसके लिए कई तरह के
कई तरह से बनाया सुरक्षा के ताना बाना...

मैं शब्दों से प्राण प्रण से प्यार करता रहूंगा
आजन्म, अन्तिम सांस तक
शब्द ही मेरे सर्वस्व हैं
जीवन-चिन्तन के आधार है
शब्द ही हमारी अस्मिता के संभार है
उन्हें सुरक्षित रखने के लिए
प्रत्येक संघर्ष-विपदा से लडूंगा


1 मार्च 13


शब्द मेरे

नितनव शब्द स्वर लथ ताले से निखरें
कभी बिखरें नहीं
अथवा घिरे, घेरे नहीं झंजुता
शब्द मेरे प्राण के झंकार पर
समय के मधुमास या पतझार पर
नए कोलम, मृदुल, बहुरंगी
विविध वर्णी, चित्त मन हर
बने जन-जन के लिए स्वांग प्रियवर,
दूर कर दे हृदय के आकाश पर छाए अंधेरे
शब्द मेरे
विघ्न बाधाएं से बचाकर
चिन्तना के सभी साजों से सजाकर
उन्हें रखा सदा
मन के बहुत नेरे
शब्द मेरे...

2 मार्च, 2013



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